सोमवार, 16 जून 2008

विजय कुमार मल्होत्रा से मिलिए

अर्थविज्ञान – भाषा कंप्यूटिंग की कला
विजय कुमार मल्होत्रा, भारतीय रेल में वर्षों तक कार्य करने के बाद भारतीय भाषाओं के प्रति अपने जुनून के कारण अब BhashaIndia टीम के साथ मिलकर कार्य करते रहे हैं. इस साक्षात्कार में अर्थविज्ञान के क्षेत्र में श्री मल्होत्रा के योगदान को और Office XP हिंदी के विकास में उनके सहयोग को उजागर किया गया है.
भाषाओं के प्रति आपकी रुचि कब जगी ?
मल्होत्रा: भाषाओं के प्रति तो मेरी रुचि तब से है, जब मैं गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में संस्कृत और हिंदी विषयों के साथ आरंभिक शिक्षा प्राप्त कर रहा था, लेकिन इसमें परिपक्वता तब आई, जब मैं हिंदी पढ़ाने के लिए यॉर्क विश्वविद्यालय,यू.के।पहुँचा और मुझे ब्रिटिश, भारतीय और अफ़्रीका जैसे विभिन्न महाद्वीपों के विद्यार्थियों को विदेशी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाने का दायित्व सौंपा गया. पहली बार मुझे महसूस हुआ कि विदेशी भाषा शिक्षण में भाषाविज्ञान और भाषा प्रौद्योगिकी की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है.

भाषा और भाषा प्रौद्योगिकी के किस पक्ष ने आपमें जुनून की हद तक लगाव पैदा किया ?
मल्होत्रा: जब भी मैं भाषाओं के मूल की ओर दृष्टि डालता हूँ तो विश्व-भर की भाषाओं में दो स्पष्ट लक्षण दिखाई पड़ते हैं: सार्वभौमिक लक्षण और भाषा-विशिष्ट लक्षण. सार्वभौमिक लक्षण वे हैं जो हिंदी, तमिल, अंग्रेज़ी, चीनी और अरबी जैसी विभिन्न भाषा-परिवारों से जुड़ी भाषाओं में भी समान रूप से पाए जाते हैं. उदाहरण के लिए, 'खाया' एक सकर्मक क्रिया है, जो खाए जाने के लिए एक कर्म और खाना क्रिया संपन्न करने के लिए एक कर्ता की आकांक्षा करती है और साथ ही यह भी अपेक्षा करती है कि उसका कर्ता सजीव हो. इस क्रिया की वृक्ष संरचना में ये सभी सार्वभौमिक लक्षण दिखाई पड़ते हैं.इसप्रकार इसकी सकर्मकता विश्व की सभी भाषाओं में समान है,लेकिन कर्ता के साथ 'ने' का प्रयोग हिंदी का भाषा-विशिष्ट लक्षण है. कुछ ऐसे भी लक्षण होते हैं जो भाषा-वर्ग विशिष्ट होते हैं. उदाहरण के लिए, एक विशेष वाक्य साँचे में कर्ता के साथ 'को' का प्रयोग सभी भारतीय भाषाओं में समान रूप से पाया जाता है; जैसे, हिंदी में 'राम को बुखार है', मराठी में 'रामला ताप आहे' ,तमिल में, 'रामक्कु ज्वरम्' ,मलयालम में ' रामन्नु पनियानु ' ,कन्नड़ में ‘रामनिगे ज्वर दिगे' , बँगला में 'रामेर ताप आछे' और अंग्रेज़ी में इसका अनुवाद होगा, 'Ram has a fever’. अंग्रेज़ी में आप देखेंगे कि 'को' का वाचक कोई परसर्ग या पूर्वसर्ग नहीं है. इससे स्पष्ट होता है कि भारत एक भाषिक क्षेत्र है. यदि हम इन लक्षणों के विश्लेषण के लिए भाषा प्रौद्योगिकी का उपयोग करें तो हम भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर साधित स्वयं भाषा शिक्षक, ऑटो-करेक्ट, ग्रामर चैकर और मशीनी अनुवाद जैसे अत्यंत जटिल भाषिक उपकरणों का विकास भी कर सकते हैं. यही कारण है कि भाषा और भाषा प्रौद्योगिकी ने मुझमें जुनून की हद तक लगाव पैदा कर दिया है..
क्या भाषाविज्ञान के प्रति आपके लगाव में आपके परिवार की पृष्ठभूमि की भी कोई भूमिका रही है ?
मल्होत्रा: मेरा संबंध प्रकाशक परिवार से तो है, लेकिन भाषाविज्ञान में मेरी रुचि तब ज़्यादा बढ़ी, जब सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में हिंदी को कार्यान्वित करते हुए मुझे अनेक चुनौतियों का सामना करना पडा.यद्यपि 14 वर्षों तक गुरुकुल में हिंदी और संस्कृत की विशेष शिक्षा के कारण भाषाओं के प्रति मेरा रुझान स्वाभाविक ही रहा, लेकिन यू.के. में विदेशी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाते समय मुझे भाषाविज्ञान का वास्तविक महत्व समझ में आया और भाषाविज्ञान में मेरी रुचि बढ़ने लगी.
आखिर वह क्या वजह थी, जिसके कारण आपने भारतीय रेल से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और अपने पसंदीदा जुनून के काम में जुट गए ?
मल्होत्रा: भारतीय रेल विश्व से सबसे बड़े संगठनों में से एक है, जिसमें 16 लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं और उनका सीधा संपर्क आम आदमी से रहता है. निदेशक (राजभाषा) के रूप में मेरा यह दायित्व था कि मैं भारतीय रेल के दैनंदिन कार्यों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दूँ.इस दायित्व के कारण मुझे यह अवसर मिला कि मैं देश-भर में विभिन्न स्तरों पर हिंदी को कार्यान्वित करने के लिए नए-नए उपायों की खोज करूँ.मैं इस बात से भी बेखबर नहीं था कि दक्षिणी राज्यों में हिंदी के प्रति अनुकूल वातावरण नहीं है. इसलिए मैंने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए संस्कृति और प्रौद्योगिकी का विशेष रूप से उपयोग करने का निश्चय किया. हमने नाटक की विधा का उपयोग अहिंदीभाषी क्षेत्रों में किया और क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग जन-संपर्क के सभी स्थलों पर शुरू कर दिया.रेलवे के सभी अनुप्रयोगों में कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग से काफ़ी सफलता मिलने लगी. विशेष रूप से आरक्षण चार्ट में हिंदी के उपयोग को जनता ने काफ़ी पसंद किया, लेकिन आरंभिक सफलता के बावजूद मुझे लगा कि अभी भी बाज़ार में स्वयं भाषा शिक्षक, ऑटो-करेक्ट,ग्रामर चैकर और मशीनी अनुवाद जैसे भाषिक उपकरणों का बहुत अभाव है और यदि मुझे अवसर मिला तो मैं अपना शेष जीवन भाषा (हिंदी) और प्रौद्योगिकी के बीच के अंतराल को यथासंभव कम करने के लिए बिताना चाहूँगा.संयोगवश, माइक्रोसॉफ़्ट ने मुझे यह अवसर प्रदान किया और मैं अपने पसंदीदा जुनून के काम में जुट गया.
आपने हिंदी कंप्यूटिंग को निचले स्तर पर पहुँचाने के लिए क्या पहल की ?
मल्होत्रा: 'क' क्षेत्र (अर्थात् हिंदीभाषी राज्य) और 'ख' क्षेत्र (अर्थात् महाराष्ट्र, पंजाब और गुजरात) में निचले स्तर पर कार्यरत भारतीय रेल के अधिकांश कर्मचारी अच्छी तरह से हिंदी जानते हैं और यह चाहते भी हैं कि रेलवे के दैनंदिन कामकाज में अंग्रेज़ी के स्थान पर हिंदी का प्रयोग जल्दी से जल्दी शुरू हो जाए। इसलिए आरंभ में हमें निचले स्तर पर आंशिक सफलता तो मिली, लेकिन रेलवे में व्यापक कंप्यूटरीकरण के बाद वे तमाम कार्य हिंदीभाषी क्षेत्रों में भी फिर से अंग्रेज़ी में शुरू हो गए, जिन्हें सफलतापूर्वक हिंदी में किया जाने लगा था,जैसे,आरक्षण चार्ट, वेतन बिल, पत्राचार, अधिसूचनाएँ, निविदा-करार आदि. इसका मुख्य कारण था, कंप्यूटरों में हिंदी-सुविधा का अभाव. अब चुनौती यह थी कि कंप्यूटर पर हिंदी में इन तमाम अनुप्रयोगों को कैसे संपन्न किया जाए. रेलों के महाप्रबंधकों के साथ परामर्श करके प्राथमिकता के आधार पर यह तय किया गया कि शुरू में उन अनुप्रयोगों को लिया जाए, जिनका जनता और निचले स्तर के कर्मचारी से सीधा संबंध है, जैसे, आरक्षण चार्ट,रेलवे टिकट,फ़ॉर्म, वेतन बिल, परिपत्र, गज़ट अधिसूचनाएँ, निविदा-करार और श्रेणी 3 और 4 के कर्मचारियों के परिचय पत्र आदि. चूँकि उस समय कंप्यूटर के अनुप्रयोग शब्द संसाधन तक ही सीमित थे,
इसलिए प्रोप्राइटरी सिस्टम पर तैयार किए जाने वाले आरक्षण चार्ट, कंप्यूटरीकृत रेलवे टिकट और वेतन बिल हिंदी में बनाने में बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.हिंदी में सॉर्टिंग की सुविधा न होने के कारण वरीयता सूची और अनुक्रमणिका तो हिंदी में तैयार ही नहीं की जा सकती थी. भारतीय रेल में प्रयुक्त विभिन्न सिस्टमों के बीच कॉम्पेटिबिलिटी न होने के कारण भी हिंदी का प्रयोग सीमित रूप में ही किया जा सकता था. भारतीय भाषाओं में युनिकोड और XML सिस्टम के आगमन के बाद यह आशा की जाने लगी है कि अब हिंदी में निचले स्तर पर भी हर प्रकार के अनुप्रयोग के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जा सकेगा.

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