सोमवार, 16 जून 2008

इंटरनेट और हिंदी

कदाचित् कभी सूरज न डूबने वाले ब्रिटिश साम्राज्य और अमरीका की मात्र सुपर ही नहीं, बल्कि सुप्रीम पावर के प्रभाव से भी अंग्रेज़ी का वर्चस्व विश्व भर में इतना नहीं फैला था, जितना कि इंटरनेट के माध्यम से रातों-रात फैल गया है. यूनेस्को के अनुसार आज इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं का लगभग 82 प्रतिशत भाग अंग्रेज़ी या रोमन आधारित भाषाओं में है. केवल 18 प्रतिशत भाग रोमनेतर भाषाओं में है और भारतीय भाषाओं में तो इसका भाग एक प्रतिशत से भी कम है. आखिर ऐसी कौन-सी दिक्कतें हैं, जिनके कारण इंटरनेट पर हिंदी और भारतीय भाषाओं में पर्याप्त सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं. भारत के भूतपूर्व महामहिम राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम ने 14 सितंबर, 2006 को हिंदी दिवस पर आयोजित एक समारोह में कहा था: ' विश्व के अनेक हिस्सों में हिंदी भाषा आसानी से बोली जा सके, इसके लिए इंटरनेट पर हिंदी साहित्य का युनिकोड स्वरूप उपलब्ध करवाना होगा.' आखिर क्या है यह युनिकोड ? क्या यह अलादीन का चिराग है, जिसके उपयोग से हिंदी और भारतीय भाषाओं में सूचनाएँ अनायास ही इंटरनेट पर आ जाएँगी.
इस समय हिंदी में इंटरनेट पर उपलब्ध वेब साइटों, पोर्टलों और ब्लॉगरों को हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं. सर्वप्रथम वे वेबसाइट, जिन्हें खोलने के लिए किसी फ़ॉन्टविशेष को डाउनलोड करना पड़ता है, जिसका परिणाम यह होता है कि तकनीकी जानकारी न रखने वाला आम उपयोगकर्ता भी इसका उपयोग नहीं कर पाता और फिर हर वेबसाइट के लिए अलग फ़ॉन्ट डाउनलोड करना अपने आप में भी कम झंझट का काम नहीं है. इसके अलावा ऐसी वेबसाइट में उपलब्ध सूचनाओं को सर्च के माध्यम से खोजा भी नहीं जा सकता. भारत सरकार की अधिकांश वेबसाइट इसी श्रेणी की हैं. दूसरी वेबसाइट वे हैं, जिनके लिए डायनामिक फ़ॉन्ट का उपयोग किया जाता है. डायनामिक फ़ॉन्ट, HTML डिज़ाइन का एक नया रूप है, जिसकी सहायता से किसी भी फ़ॉन्ट में निर्मित वेबसाइट की विषयवस्तु को उपयोगकर्ता फ़ॉन्टविशेष को डाउनलोड किए बिना ही देख और पढ़ सकता है. हिंदी के अधिकांश समाचारपत्र इसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, लेकिन डायनामिक फ़ॉन्ट में निर्मित वेबसाइट को न तो आप वर्ड आदि प्रलेख में सहेज सकते हैं और न ही इसमें संकलित विषयवस्तु को सर्च के माध्यम से खोजा जा सकता है. इससे यह स्पष्ट है कि इंटरनेट पर इन दोनों प्रकार की वेबसाइटों का कोई अस्तित्व ही नहीं है और इस प्रकार वेबसाइट बनाने का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है.
तीसरी श्रेणी की चर्चा से पहले हम कंप्यूटर के क्षेत्र में हिंदी की स्थिति की समीक्षा करने का प्रयास करेंगे. यह विडंबना ही है कि आज भी कंप्यूटर पर भारतीय भाषाओं के अधिकांश उपयोगकर्ता सिस्टम और फ़ॉन्ट की असंगतता के कारण ई-मेल, गपशप (चैट), टैम्पलेट, ऑटो टेक्स्ट, थिसॉरस, स्पेलचैक जैसे कंप्यूटर के सामान्य अनुप्रयोगों का भी उपयोग करने में हिचकिचाते हैं. यही कारण है कि कंप्यूटर पर हिंदी के उपयोगकर्ता आज भी शब्दसंसाधन तक ही सीमित हैं. शब्दसंसाधन के अंतर्गत भी वे कंप्यूटर पर हिंदी में टाइप करने मात्र को ही हिंदी कंप्यूटिंग समझने लगते हैं. बहुत ही कम उपयोगकर्ता ऐसे हैं जो हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में, पावर पॉइंट, ऐक्सेल और ऐक्सेस आदि का उपयोग करते हैं या इंटरनेट पर हिंदी में खोज जैसी सुविधाओं का उपयोग करते हैं. इसका मुख्य कारण अब तक तो यही था कि भारतीय भाषाओं में विभिन्न सिस्टमों के आरपार कोई समान मानक प्रचलित नहीं था. इस दिशा में भारत सरकार द्वारा अनुमोदित भारतीय भाषाओं में कंप्यूटिंग के लिए ISCII कोडिंग प्रणाली एक अच्छी शुरूआत थी, लेकिन विश्वीकरण के इस युग में विविध प्रकार के प्लेटफ़ॉर्म, फ़ॉन्ट और सिस्टम के बावजूद आवश्यकता एक ऐसी मानक कोडिंग प्रणाली की थी, जिसके अंतर्गत विश्व की सभी भाषाएँ सह-अस्तित्व की भावना के साथ रह सकें. इन समस्याओं का एकमात्र समाधान है, युनिकोड. हिंदी के व्यापक प्रचार-प्रसार में युनिकोड की सुविधा क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है. आज विश्व की सभी लिखित भाषाओं के लिए युनिकोड नामक विश्वव्यापी कोड का उपयोग, माइक्रोसॉफ़्ट, आई.बी.एम.,लाइनेक्स, ओरेकल जैसी विश्व की लगभग सभी कंप्यूटर कंपनियों द्वारा किया जा रहा है. यह कोडिंग सिस्टम फ़ॉन्ट्समुक्त , प्लेटफ़ॉर्ममुक्त और ब्राउज़रमुक्त है. विंडोज़ 2000 या उससे ऊपर के सभी पी सी युनिकोड को सपोर्ट करते हैं, इसलिए युनिकोड आधारित फ़ॉन्ट का उपयोग करने से न केवल हिंदी को आज विश्व की उन्नत भाषाओं के समकक्ष रखा जा सकता है, बल्कि इसकी सहायता से निर्मित वेबसाइट में खोज आदि अधुनातन सुविधाएँ भी सहजता से ही उपलब्ध हो सकती हैं. यह हर्ष का विषय है कि पिछले कुछ समय से भारत सरकार के कुछ विभाग, हिंदी के कुछ बड़े समाचार-पत्र और कुछ हिंदी पोर्टल युनिकोड के महत्व को समझने लगे हैं और उन्होंने अपनी वेबसाइट के लिए युनिकोड का प्रयोग शुरू कर दिया है. तीसरी श्रेणी की वेबसाइट में इन्हीं विभागों, समाचार पत्रों और पोर्टलों का समावेश है. इस दिशा में भारत सरकार का विदेश मंत्रालय, दैनिक जागरण, अभिव्यक्ति व अनुभूति नामक वेबपत्रिकाएँ और वेबदुनिया पोर्टल अग्रणी हैं. यह भी दिलचस्प तथ्य है कि इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभाने का श्रेय उन छोटी पत्रिकाओं को है, जिनके पास साधनों का हमेशा ही अभाव रहता है. ये पत्रिकाएँ हैं: निरंतर, वागर्थ, तन्मय, तद्भव, अन्यथा आदि. युनिकोड के प्रयोग के कारण न केवल इनकी विषयवस्तु को इंटरनेट पर बिना फ़ॉन्ट डाउनलोड किए देखा और पढ़ा जा सकता है, बल्कि इसे सहेजकर रखा भी जा सकता है और अंतत: इसे गूगल और अल्टा विस्टा आदि जैसे सर्चइंजनों की सहायता से खोजा भी जा सकता है. हिंदी में युनिकोड के निरंतर बढ़ते उपयोग के कारण अब यदि यूनेस्को की कोई रिपोर्ट तैयार होती है तो उसमें हिंदी और भारतीय भाषाओं का अंश पहले की तुलना में निश्चय ही काफ़ी अधिक होगा.

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